Wednesday, December 25, 2019

A heart touching poem based on true events
Narendra Yadav

कभी गुंजन तो कभी आसिफा तो कभी ट्विंकल,
न हम आज जागे है न जागे थे कल।
कभी दिल्ली तो कभी मुम्बई,
कभी हैदराबाद तो कभी अलीगढ़
न हम आज जागे है न जागे थे कल।।
वो दर्द में चीखी चिल्लाई,
हमने सिर्फ मोमबत्तियां जलाई।
उसने सरिया को जिस्म के आरमपर किया,
हमने एक को नाबालिग करार दिया।
उस नन्ही सी जान को उन दानवो ने कुचल डाला,
और हमने बदले में सिर्फ जुलूस निकाला।

उन 45 मिनटों में चीखती रही हर पल,
न हम आज जागे है न जागे थे कल।
जब बारी बारी उसका रेप हो रहा था,
हमारा पूरा समाज चैन की नींद सो रहा था।
इस घटना ने तो पूरे समाज को हिला दिया,
रेप तो रेप उसे जिंदा भी जला दिया।

दो दिन तक हमने भी शोक जताया,
फिर एक और रेप के इंतजार में हो गए सब नॉर्मल,
न हम आज जागे है न जागे थे कल।
अपनी ईगो में आकर तेजाब से उसका चेहरा जला दिया,
गलती सिर्फ इतनी थी उसकी कि उसने प्रपोजल ठुकरा दिया।

जब इंसाफ के लिए कानून से मदद की आस लगाई,
दोष किसी और का था पर शक्ल भी उसी ने छुपाई।
माँ बाप कोर्ट के चक्कर काटते रहे पर निकला न कोई हल,
न हम आज जागे है न जागे थे कल।।
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